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नई परती व पुरानी परती के बारे में

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Khasra form


(नयी तथा पुरानी परती भूमि लेख नियावली के पैरा 101 तथा क101 में किया गया है। इसे जमींदारी विनाश क्षेत्र के खसरे के कालम 18 तथा 19 में द नौन जैड.ए.के खसरे के कालम 19 व 20 किया जाता है। जब किसी गाटे में खेती न की जाय और उसकी भूमि की प्रकृति में कोई परिवर्तन न हुआ हो जिसके प्रविष्टि में कोई परिवर्तन करना पड़े तो स्तम्भ 18 में उस गाटे के सामने केबसामने लगातार तीन वर्षों तक क्रमश: पहले वर्ष में नवीन परती (1) दूसरे वर्ष में नवीन परती (2) तीसरे वर्ष में नवीन पती (3) लिखा जायेगा और उसके बाद के लगातार दो वर्षों तक क्रमशः चौथे वर्ष
में पुरानी परती (1) तथा पाँचवें वर्ष में पुरानी परती (2) लिखा जायेगा । छठवें वर्ष में उपयुक्त सब न लिखकर कृषि योग्य बंजर लिखा जायेगा। इस प्रकार किसी गाटे में पहले तीन वर्षों तक खेती न करने की दशा में वह नवीन परती माना जाता है तथा बाद के दो वर्षों में उसे पुरानी परती माना जाता है। यह नवीन व पुरानी परती में अन्तर है। उर्दू भाषा के प्रचलित शब्द परती जहीद (नई) व परती कदमी (पुरानी) शब्द पहले प्रयोग किया जाते थे कहीं कहीं पुरानी प्रथा अपनाने के कारण इन शब्दों का प्रयोग अब भी होता चला आ रहा है । पाँच वर्षों की अवधि व्यतीत हो जाने पर वह परती न होकर कृषि योग्य बंजर मानी जाती है तथा बाद के सभी वर्षों में वह बंजर मानी जाती है। यदि कोई गाटा वर्ष भर ईख की खेती के प्रयोग हेतु तैयारी के अधीन रहा हो तो उसे परती नहीं लिखा जाकर “पाण्डरा” लिखा जावेगा।

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