सीमा द्योतक़ चिन्ह क्या हैं / bhulekh/bhusolver

दो या दो से अधिक ग्रामों की सीमाओं के मोड़ या टेढ़ पर सम्बंधित ग्रामों की सीमाओं को अलग अलग स्प्ष्ट करने के लिए जो चिन्ह पत्थर, सीमेंट अथवा चुने के बनाकर लगाए  जाते थे ।वे सीमा द्योतक़ चिन्ह कहलाते थे।इनको अधिक स्थाई व टिकाऊ बनाने के लिये इनको पक्का बनाया जाता था।जो पत्थर गाड़े जाते थे,वह अधिक सुडोल नहीं रखे जाते थे।पत्थर की कुल लम्बाई के दो तिहाई हिस्से को भूमि में व एक तिहाई को ज़मीन से ऊपर रखते हैं।इससे इनके शीघ्र नष्ट होने की सम्भावना कम रहती है।जहाँ पर यह लगाएं या बनाये जाते हैं सर्वेक्षण के अनुसार मानचित्र में वहीँ उनको दर्शा दिया जाता  है इनकी वास्तविक उपयोगिता पूर्ण ग्राम का सर्वेक्षण या फिर किसी व्यक्तिगत आपसी सीमा विवादों के निपटारे के समय बखूबी आँकी जा सकती है यहाँ तक मेरा मानना है कि यदि सीमा द्योतक़ चिंह नहीं होते तो प्रति दिन सीमा विवाद अनगिनत हो जाते क्योंकि सबल पक्ष दुर्लब पक्षों की ओर सीमा बढ़ा कर अपना अधिकार जाहिर करता लेकिन सीमा निर्धारित होने के कारण चंद लोग इस प्रकरण में अभी भी शामिल हैं इसलिए कह सकते हैं इनका हमारे काश्तकारों की सीमा सुरक्षा  व लेखपाल  की कार्य प्रणाली में बहुत ही उपयोगिता है।
सीमा द्योतक़ चिन्हों की पड़ताल कर प्रति वर्ष खसरा रजिस्टर के प्रथम पृष्ठ पर सीमा द्योतक़ चिन्ह की सूची आकार पत्र प 8 को चस्पा दिया जाता है। किसी कारण से यदि गाँव के सीमा द्योतक़ चिन्ह उखाड़ फेक दिया गया हो या इनकी मरम्मत की आवश्यकता  है तो लेखपाल आकार पत्र 8ग व 9ग पर अपनी रिपोर्ट भूलेख निरीक्षक को देगा ,यह रिपोर्ट अंत में तहसीलदार के माध्यम से परगनाधिकारी /उपजिलाधिकारी तक पहुँचेगी।

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