वसीयत कैसे करें व उत्तराधिकार कैसे पाएं।

संक्रमणीय भूमिधर अपनी संक्रमणीय भूमिधरी की वसीयत उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 169 के उपबंध के अधीन करता है।और 11 फरवरी 2006 के लागू हो जाने के बाद अब संक्रमणीय भूमिधरी की वसीयत राजस्व सहिंता की धारा 107 के उपबन्धों के अनुसार करता है।जिसमें यह स्पष्ट विधान किया गया है कि वसीयत लिखित एवं दो गवाहों द्वारा अनुप्रमाणित होनी चाहिए और उसका रजिस्ट्रीकृत होना अनुवार्य है।यहाँ उल्लेखनीय यह है कि उक्त उपबन्धों के विपरीत निष्पादित की गई वसीयत को मान्य  नहीं किया जा सकता है।वसीयत कर्ता अथवा उसके हिताधिकारी का लागू होने वाली स्वीय विधि (personal law) उत्तर प्रदेश जमीन्दारी विनाश व भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 169 अथवा उत्तरप्रदेश राजस्व सहिंता की धारा 107 के अधीन निष्पादित पर लागू नहीं होती है।राजस्व निरीक्षक ( revenue inspector) वसीयत के आधार पर नामांतरण नहीं कर सकता -उत्तर प्रदेश भू राजस्व अधिनियम 1901 की 33 क एवं उत्तर प्रदेश राजस्व सहिंता 2006 की धारा 33 में यह प्रावधान किया गया है कि राजस्व निरीक्षक उत्तराधिकार के निर्विवादित मामलों में ही नामान्तरण का आदेश पारित कर सकता है।उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता नियमावली 2016 के नियम 31 के उप नियम (5) में यह स्पष्ट प्रावधान किया गया है कि राजस्व सहिंता की धारा 33 के प्रावधान वसीयत के आधार पर उत्तराधिकार का दावा करने वाले प्रकरणो में लागू नहीं होगा अर्थात यदि किसी खातेदार की मृत्यु हो जाने के बाद कोई व्यक्ति वसीयत के आधार पर नामान्तरण का दावा करता है तो राजस्व निरीक्षक ऐसे प्रकरणों में राजस्व निरीक्षक मामलों का निस्तारण नहीं कर सकता है।ऐसे प्रकरणों में राजस्व निरीक्षक तहसीलदार के पास सन्दर्भित कर देता है।जिससे कि उसका निस्तारण गुणदोष के आधार पर किया जा सकें।अर्थात हम यह कह सकते हैं कि उपरोक्त प्रकरण की सुनवाई तहसीलदार से न्यून व्यक्ति नहीं कर  सकता है।

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